नई दिल्ली / चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को पीछे हटने के आदेश जारी कर दिए हैं और उनकी सेना तेजी से पीछे हट भी रही है. लेकिन, भारतीय सेना को अभी भी चीन पर पैनी नजर रखनी होगी. आज हम आपको बताएंगे कि भारत चीन को जितना पीछे धकेलना चाहता था उसमें कामयाब हुआ या नहीं. लेकिन, उससे पहले एक कामयाबी की खुशखबरी जान लीजिए, जिससे चीन और पाकिस्तान के हुक्मरानों और जनरलों की फिक्र जरूर बढ़ गई है. ये खबर हिंदुस्तान की सेना की ताकत बढ़ाने और दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए बनाए गए ड्रोन रुस्तम से जुड़ी है.
खबर आ रही है कि देसी ड्रोन रुस्तम-टू को अपग्रेड करने का काम पूरा हो चुका है. अपग्रेड हुए रुस्तम-टू को अप्रैल में 27 हजार फीट की ऊं
जिस तरह अमेरिकी ड्रोन प्रिडेटर से दुश्मन कांपते हैं, उसी तरह रुस्तम-टू के नाम से हिंदुस्तान की जमीन पर नापाक नजर रखने वाला पाकिस्तान और उसका आका चीन चिंता में डूब गया है क्योंकि हिंदुस्तान की सेना को एक और घातक हथियार मिलने का सीधा-सीधा मतलब ये है कि अब चीन की चालबाजी नहीं चलेगी. वो चीन जिसको भारत ने पूर्वी लद्दाख में पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया है.
चीन ने अपने सभी टैंक 80-90 KM रुटॉग मिलिट्री बेस पर भेजे
आज भारत और चीन के बीच डिसइंगेजमेंट शुरू हुए 5 दिन बीत गए हैं और पैंगोंग लेक के नॉर्थ और साउथ एरिया में टैंक और हेवी व्हीकल पीछे करने की प्रक्रिया पूरी हो गई है. भारत ने अब अपने टैंक स्टैंडऑफ वाली जगह से 20-25 किलोमीटर दूर चुशूल में टैंक बेस में तैनात कर दिए है. वहीं चीन ने अपने सभी टैंक 80-90 किलोमीटर रुटॉग मिलिट्री बेस पर भेज दिए हैं. इसके अलावा कई इंफ्रास्ट्रक्चर भी हटा दिए गए हैं. चीन ने अपनी ओर के फिंगर एरिया में बनाई गई स्माल जेटी के साथ 5-6 और निर्माणों को पूरी तरह से तोड़ दिया है. ये बताता है कि भारत ने चीन से वो सारी बातें मनवा ली हैं, जो भारत चाहता था यानी फिंगर फोर को पूरा खाली कराना, सारे टैंक पीछे हटवाना और सबसे अहम LAC पर चीन द्वारा बनाए गए सारे निर्माणों को हटवाना.
चीन इसमें कोई चालाकी नहीं कर रहा है, ये सुनिश्चित करने के लिए भारत इन सभी गतिविधियों पर सैटेलाइट और हाई रिजॉल्यूशन सर्विलांस ड्रोन के जरिए नजर रख रहा है. पैंगोंग लेक के साउथ और नॉर्थ एरिया में डिसएंगेजमेंट की सारी प्रक्रिया अगले हफ्ते 20 से 22 फरवरी के बीच पूरी हो जाने की उम्मीद है. पैंगोंग लेक में डिसएंगेजमेंट के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत होगी और फिर नंबर आएगा डेपसांग प्लेन्स में डिसइंगेजमेंट का क्योंकि डेपसांग प्लेन्स सामरिक तौर पर बहुत अहम. यह DBO यानी दौलत बेग ओल्डी एयरस्ट्रिप के पास है. डेपसांग प्लेन्स में इस वक्त चीन की सेना की दो ब्रिगेड तैनात हैं, जिससे निपटने के लिए भारत ने भी पर्याप्त तैनाती कर रखी है.
डेपसांग में भी कदम वापस खींचते दिखेगा चीन?
जिस तरह चीन के टैंक और सैनिक अभी पैंगोंग लेक से वापस जाते दिख रही है, उसी तरह चंद दिन बाद डेपसांग में भी कदम वापस खींचते हुए नजर आएंगे. ये भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि है. ये जीत इसलिए भी बड़ी हो जाती है क्योंकि चीन ने इस वक्त पूरी दुनिया को कोरोना की भट्ठी में झोंक रखा है. अमेरिका के साथ साथ अनेको देशों की अर्थव्यवस्था बर्बाद कर रखी है. इसके बावजूद भारत ने कोरोना काल में आर्थिक जंग लड़ते हुए चीन को लद्दाख की जंग में परास्त कर दिया. अब आपको चीन के एक MYSTERIOUS नक्शे के बारे में बताते हैं, जिसकी आड़ में उसने दक्षिण चीन सागर को भी निगल लिया और जिसे वो भारत को भी जब-तब दिखाता रहता है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में जो कुछ कहा. वो बीजिंग में बैठे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कानों तक जरूर पहुंची होगी और जिनपिंग ने जब नया वर्ल्ड ऑर्डर शब्द सुना होगा तो उनके चेहरे पर तिलमिलाहट भी जरूर छलकी होगी क्योंकि दक्षिण चीन सागर में चीन ने सलामी स्लाइसिंग में जो कामयाबी पाई है और जिस कामयाबी ने दुनिया के डिप्टी सुपर पावर शी जिनपिंग की महात्वाकांक्षा में नए पर लगा दिए हैं. भारत ने वो पर कतर दिए हैं और कतरे हुए पर का दर्द समझने के लिए दक्षिण चीन सागर में चीन के विस्तारवाद की कहानी समझिए.
दक्षिण चीन सागर में चीन की महान विरासत
दुनिया सोच भी नहीं सकती थी कि महासागर को भी कतरा-कतरा करके निगला जा सकता है. लेकिन, चीन ने इसे भी मुमकिन कर दिखाया. दरअसल चीन में कम्युनिस्ट शासन आने के बाद से ही वहां के शासकों ने दावा करना शुरू किया कि दक्षिण चीन सागर में चीन की महान विरासत फैली हुई है. और पूरा महासागर चीन की उसी महान विरासत का एक अभिन्न हिस्सा है. ये बात अलग है कि चीन ने ये कभी नहीं बताया कि उस महान विरासत का आधार क्या है. लेकिन, जिस विरासत की आड़ में एक नया नक्शा खींचा गया. वो चीन की नेशनलिस्ट पार्टी ग्युओमिन्डॉन्ग के शासन का युग था.
चार-पांच दशक पहले से जब चीन ने दक्षिण चीन सागर में धौंस दिखानी शुरू की तो दुनिया ने इसे हल्के में लिया था. खासतौर पर तब सुपरपावर रहे अमेरिका ने सोचा था कि इतने बड़े सागर पर कब्जे की बात किसी भी देश के बूते की बात नहीं. जब चीन की धौंस बढ़ती गई तो दुनिया ने दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे का आधार पूछा और तब चीन ने ग्युओमिन्डॉन्ग युग के नक्शे का हवाला दिया था. चीन के शासक सुन येत सुन की पार्टी ग्युओमिन्डॉन्ग ने 1912 से 1949 तक चीन के मेनलैंड पर शासन किया था, जिसने ताइवान, सिंगापुर और तिब्बत से लेकर दुनिया के कई देशों को चीन का हिस्सा बताया.
चीन की दादागीरी का मामला जब यूएन तक पहुंचा…
हद तो ये है कि चीन में जिस कम्युनिस्ट पार्टी ने ग्युओमिन्डॉन्ग का तख्ता पलटा था. वो विस्तारवाद के लिए उसी युग का नक्शा लेकर आई थी. लेकिन, ये सोची-समझी चाल थी. जिसे दुनिया ने समझकर भी नजरअंदाज कर दिया. चीन की दादागीरी का मामला जब यूएन तक पहुंचा तो उसने दक्षिण चीन सागर के कुछ द्वीपों तक ही अपना दावा सीमित कर लिया और फिर चीन ने द्वीपों के ही जरीये पूरे दक्षिण चीन सागर में अपना विस्तारवाद फैला लिया.
चीन ने सागर में कृत्रिम द्वीप बसाने शुरू किए. छावनी बनानी शुरू की और हद तो ये है कि अमेरिकी हथियारों, अमेरिकी इंजीनियरिंग की ही मदद से उसने दक्षिण चीन सागर पर अपना कब्जा पुख्ता कर लिया. आज की तारीख में चीन का दावा इतना बड़ा हो चुका है कि उससे निपटने में अमेरिका जैसे सुपरपावर के भी पसीने छूटने लगे हैं. ग्युओमिन्डॉन्ग युग के नक्शे के ही आधार पर चीन भारत के भी अधिकतर हिस्से पर दावा करता है. जिस नक्शे का कोई आधार नहीं है लेकिन इस विस्तारवाद को भारत ने पहले डोकलाम में चुनौती दी. जो चीन के लिए भारत का बेहद अप्रत्याशित कदम था.
भारत ने चीन को चौतरफा घेरा
डोकलाम के उलट, चीन ने पूर्वी लद्दाख में अपनी एक बड़ी सेना भेजी, तोप और बख्तरबंद गाड़ियों से लैस. तब चीन ने ये कतई नहीं सोचा होगा कि भारत ना सिर्फ सीमा पर चुनौती देगा, बल्कि उसे क्वाड देशों के साथ मिलकर चौतरफा घेरेगा और इससे भी आगे बढ़कर कारोबार पर मारना शुरू कर देगा. आखिर चीन ने जो अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा था. उसे भारत ने रोक लिया. लेकिन, चीन का ये घोड़ा कभी भी पलट सकता है, जिसके लिए हिंदुस्तान को तैयार रहना होगा.
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