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Friday, March 27, 2020

शहर चला गांव की ओर, लॉक डाउन से प्रभावित दिहाड़ी मजदूर हुए बेरोजगार

संस्कार न्यूज़ 28 मार्च 2020
  पवन भार्गव
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  •  प्रशासन इन मजदूरों को अपने-अपने स्थान तक पहुंचाने की व्यवस्था करें इस महामारी से लड़ने के लिए सरकार प्रशासन के साथ जनता भी खड़ी है लेकिन कुछ समस्या है उन पर प्रशासन ध्यान दें

  • शहर चला गांव की ओर

  • लॉक डाउन से प्रभावित दिहाड़ी मजदूर हुए बेरोजगार

  • सड़कों और रेल्वे ट्रेक से पैदल निकले सैकडों मील अपने घर जाने

  • हजारों की संख्या में टोलियों ने महानगरों से किया कूच,

दिल्ली लखनऊ मुम्बई– कोरोना वायरस की महामारी के बीच लॉक डाउन के आदेश ने पूरे देश में खलबली मचादी है लेकिन सबसे ज्यादा इसका असर दिहाड़ी मजदूरो पर पड़ रहा है जो सिर पर भारी बोझा लिए पैदल ही अपने छोटे छोटे बच्चों पत्नी और परिवार के साथ अपने गॉव सैकड़ो किलोमीटर की यात्रा पर निकल चुके है ।

खास है,ना उनके पास कुछ खाने को है ना ही जेब में पैसे। यह लोग सड़कों पर पैदल तो जा ही रहे है वही पुलिस के डंडों के डर से सूने रेल्वे ट्रेक भी इनका रास्ता बन गये है। क्या लगता नही कोरोना के साथ देश में पलायन का यह ख़ौफ़नाक चेहरा बिना पूर्व तैयारी के लॉक डाउन का ऐलान करने से सामने आया है।

देश के जो आंकड़े है उंसके मुताबिक करीब 19 करोड़ लोगों के पास दो वक्त की रोटी नही है और 10 करोड़ लोगों के सिर पर छत नही है सबसे अहम बात हैं कि 5 करोड़ लोग अपना घरवार गांव कस्बा और शहर छोड़कर रोजीरोटी कमाने देश के महानगरो में मजदूरी कर रहे थे ।

लेकिन लॉक डाउन के चलते उनके रोजगार बंद हों गये उन्हें मजदूरी नही मिल रही आज उनपर भूखों मरने की नौबत है इसी के चलते वे अपने मासूम बच्चों पत्नी परिवार को लेकर निकल पड़े है अपने घर गांव की तरफ,परंतु रेल बस और अन्य साधन उन्हें नही मिल रहे तो पैदल ही सैकड़ो किलोमीटर की यात्रा पर निकल पड़े कुछ रिक्शा साइकिल का भी सहारा ले रहे हैं।

लेकिन अधिकांश पैदल और रेल्वे ट्रेक के सहारे अपने अपने गंतव्य की राह चल पड़े है जिससे जगह जगह तो भीड़ जैसी शक्ल दिख रही है पूछो तो कहते हैं क्या करे कोरोना वायरस से बाद में मरेंगे उससे पहले भूख से दम तोड़ देंगे सिर पर सामान का बोझ है तो गोद मे मासूम बच्चे और छोटे छोटे बच्चे पैदल माता पिता का साथ पकड़े है।

कई के पैरों में छाले भी पड़ गये पर आज इनके लिये जैसे चलना ही जीवन का नाम है जहाँ काम करते थे वहां काम बंद फेक्ट्री बंद कंस्ट्रक्शन वर्क बंद मालिक भी कुछ नही कर पा रहा किसी के पास कुछ पैसे है कुछ खाली हाथ है ।

ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर वे है जो रोजाना मेहनत मजदूरी करके दो पैसे कमाते है और खुद अपना और अपने परिवार का किसी तरह अभावों में पालन करने के लिये दो जून की रोटी का जुगाड़ करते रहे थे लेकिन 21 दिन के लॉक डाउन ने जैसे इनके जीवन को ही लॉक कर दिया और आज यह दाने दाने को मोहताज होकर पलायन कर रहे हैं कहते है अपने गांव में कम से कम अपनो के बीच तो रहेंगे।

उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद हो या दिल्ली का गाजीपुर बॉर्डर और चंडीगढ़ और मुंबई के ओव्हर ब्रिज हाईवे सब हजारों मजदूरों की टोलियों से भरे पड़े है और दस बीस नही सैकड़ो किलोमीटर की यात्रा वह भी पैदल काफी कठिन होने वाली हैं ।

जिनमें चंडीगढ़ से उत्तर प्रदेश के बलराम पुर जा रहा लालाराम 900 किलो मीटर यात्रा करेगा तो दिल्ली से बिहार के मोतिहारी होकर खैरी लखमीपुर जाने वाले किशन और उसके परिवार को 1018 किलोमीटर पैदल चलना है

जबकि गुजरात के अहमदाबाद से राजस्थान राज्य के ढोंगरपुर उदयपुर और साबरकोठा जाने वाला जत्था 800 से 900 किलोमीटर चलेगा तब जाकर ठिकाने पर पहुंचेगा और मुंबई से मध्यप्रदेश के झाबुआ तक बाबूलाल और उसके साथ के परिवारों को 600 किलोमीटर चलना होगा जबकि पानीपत से उत्तर प्रदेश के एटा दिल्ली से जयपुर ,लखनऊ से बहराइच जाने वाले जत्थे एक दो नही सैकडों की संख्या में है।यह तो एक उदाहरण पेश किया है।

जो कोरोना से बेफ्रिक्र नही पर अपने बच्चों परिवार के लिये खतरे से खेल रहे है। जबकि दिल्ली में बस के इंतजार में हजारों लोग भीड़ की शक्ल में बाहरी हाइवे पर इकट्ठा देखे जा रहे हैं।

सबाल उठता है क्या लॉक डाउन की घोषणा जल्दबाजी में की गई और समय से पहले इन सभी दिहाड़ी मजदूर परिवारों को उनके गृह नगर, गाँवो को भेज देना चाहिये था उंसके बाद लॉक डाउन की घोषणा होना थी लगता है कही ना कही गलती तो हुई है लेकिन कोरोना का खतरा भी बड़ा था।

परंतु अब देश की सरकार के सामने कोरोना के साथ पलायन और इन मजदूरों को उनके घरों तक सुरक्षित भेजने की एक बड़ी समस्या भी सामने मुँह वाये खड़ी है।

जबकि पुलिस कर्मी एनजीओ और अन्य सामाजिक संगठन की कई जगह इनके खाने पीने का इंतजाम किया तो है दिल्ली उत्तर प्रदेश की सरकार भोजन पैकेट भी बंटवा रही है लेकिन इससे पूरा नही पड़ रहा ।

जबकि गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश भी दिये है कि जो भी लोग उनके क्षेत्र से जाये उन्हें लेजाने का साधन और खाने पीने की पूरी व्यवस्था करें। लेकिन राज्य सरकारें भी फिलहाल तो व्यवस्था बनाने में नाकामयाब ही साबित हुई क्योंकि अभी भी रेल्वे ट्रेक और सड़कें भरी है इन पैदल चलते दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ से।

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