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भोपाल। मुख्यमंत्री कमलनाथ और राज्यपाल श्री लालजी टंडन के बीच तनाव के बाद मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी स्थिति में संभव है कि राज्यपाल महोदय राष्ट्रपति शासन के लिए सिफारिश कर दें। यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। 

मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति शासन किस आधार पर लग सकता है

पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में महाराष्ट्र में चुनाव नतीजों के 19 दिन बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। तब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के तीन प्रमुख दलों भाजपा, शिवसेना और राकांपा को सरकार बनाने का न्योता दिया था, लेकिन कोई भी दल सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बल नहीं जुटा पाया। 12 दिन बाद रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटा और देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। 

इससे भी पहले जून 2018 में जम्मू-कश्मीर में जब भाजपा ने महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की। हालांकि, इसी बीच वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया। कुल मिलाकर जब भी राज्यपाल को ऐसा लगता है कि प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता है एवं किसी भी दल के पास संख्या बल नहीं है तो राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं। मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का मतलब फिर से चुनाव नहीं होगा बल्कि और राज्यपाल एक बार फिर सभी दलों को सरकार बनाने का मौका देंगे। जिसके पास 50% से अधिक विधायक होंगे वही पार्टी सरकार बना पाएगी।


मध्यप्रदेश विधानसभा में वर्तमान स्थिति