कोरोना के चलते यूरोप के कई देशों में दोबारा लॉकडाउन से नाराज जनता, कई जगहें हुई हिंसक झड़पें
सार
- लॉकडाउन का यूरोप में बढ़ा विरोध, जगह-जगह हिंसक झड़पें
- दोबारा लॉकडाउन लागू करने से नाराज लोग सड़कों पर उतरे
- लॉकडाउन से फायदे कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका से फूटा गुस्सा
विस्तार
यूरोप में कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी लहर पिछले मार्च में आई पहली लहर की तुलना में ज्यादा तेजी से फैली है। स्पेन और फ्रांस में इस बार एक दिन में सबसे ज्यादा मामले सामने आने के रिकॉर्ड टूट गए हैं। इसे देखते हुए अनेक देशों में लॉकडाउन का एलान किया गया है।
लेकिन फर्क यह है कि इस बार लॉकडाउन को पहले जैसा जन-समर्थन नहीं मिल रहा है। कई देशों में लॉकडाउन लागू करने में जुटी पुलिस और लॉकडाउन विरोधी भीड़ के बीच झड़पें होने की खबरें आई हैं। इसकी मुख्य वजह मार्च से मई तक रहे पहले लॉकडाउन के कारण आई आर्थिक मुसीबत है। इससे उन दक्षिणपंथी नेताओं को अब ज्यादा समर्थन मिल रहा है, जो शुरू से लॉकडाउन या मास्क पहनना अनिवार्य करने के विरोधी रहे हैं। ब्रिटेन में ब्रेग्जिट पार्टी के नेता नाइजेल फराज ने अपनी पार्टी का नाम बदल कर रिफॉर्म यूके पार्टी कर दिया है। उन्होंने एलान किया कि अब इस पार्टी का मुख्य एजेंडा लॉकडाउन का विरोध करना होगा। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से जितना लाभ होगा, उसकी तुलना में उससे होने वाला नुकसान उससे कहीं ज्यादा होगा।
कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए पिछले चार दिन के अंदर स्पेन, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और ब्रिटेन में पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन लागू किया गया है। इनमें सबसे जोरदार विरोध स्पेन और बेल्जियम में देखने को मिला है।
स्पेन सरकार ने बीते शनिवार को सख्त लॉकडाउन लागू करने का एलान किया था। इसके तहत रात का कर्फ्यू लागू किया गया है और प्रांतों की सीमाओं को सील कर दिया गया है। इस एलान एक दिन बाद से स्पेन में लागू प्रतिबंधों के उल्लंघन की कई घटनाएं हुई हैं।
कई जगहों पर भीड़ ने लूटपाट मचाई और तोड़फोड़ की। राजधानी मैड्रिड में हिंसा में 12 लोग घायल हो गए। बार्सिलोना, मालगा, विटोरिया, वेलेंसिया, बर्गोस आदि जैसे शहरों में भी लोगों ने सड़क पर आकर लॉकडाउन का विरोध किया है। धुर दक्षिणपंथी वॉक्स पार्टी ने ज्यादातर जगहों पर विरोध का नेतृत्व किया है।
बेल्जियम में धुर दक्षिणपंथी गुटों से जुड़े तकरीबन 2000 वैक्सीन विरोधी कार्यकर्ताओं ने राजधानी ब्रसेल्स में पिछले सोमवार को घेरा डाल दिया। उन्होंने कोरोना संक्रमण संबंधी सभी प्रतिबंधों को हटाने की मांग की। पुलिस को उन्हें हटाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा।
कोरोना संक्रमण के पहले दौर में सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए देशों में इटली भी था। वहां भी नए सिरे से प्रतिबंध लागू किए गए हैं। सिनेमा और थिएटर बंद कर दिए गए हैं, जबकि शाम छह बजे तक ही अब बार खुला रखने की इजाजत है। इन प्रतिबंधों के लागू होनेके बाद फ्लोरेंस, रोम, नेपल्स, तुरिन, बोलोगना जैसे शहरों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं।
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर बोतलें फेंकी, पथराव किया और वाहनों को पलट दिया। इटली के गृह मंत्री लुसियाना लेमोग्रेसी के मुताबिक नव-फासीवादी गुटों से जुड़े लोग और असामाजिक तत्व ऐसी गतिविधियों में शामिल हुए हैं।
जर्मनी में पहली बार की तरह इस बार भी सॉफ्ट लॉकडाउन लागू किया गया है। इसके बावजूद जर्मनी गुजरे महीनों में भी मास्क पहनना अनिवार्य करने के आदेश के विरोध में बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं। फ्रांस में भी इस बार सॉफ्ट लॉकडाउन का सहारा लिया गया है। मगर वहां मिली प्रतिक्रियाओं से जाहिर है कि ये उपाय अब जनता में लोकप्रिय नहीं है।
जानकारों का कहना है कि लॉकडाउन के विरोध की वजह ये समझ बनना है कि महामारी अभी लंबे समय तक जारी रहेगी। लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था तबाह हुई है, जिसकी कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ी है। इसलिए महामारी पर काबू पाने केलिए उन्हें ये उपाय अब माफिक नहीं लग रहा है।
इटली में प्रदर्शनकारियों ने जो नारे लगाए, उनमें शामिल हैं- काम हमारा हक है और अगर तुम बंद करते हो तो हमें भुगतान करो। यानी बढ़े विरोध के पीछे धुर दक्षिणपंथियों के वैचारिक दुराग्रह से कहीं ज्यादा आर्थिक कारण अहम हैं।
लेकिन फर्क यह है कि इस बार लॉकडाउन को पहले जैसा जन-समर्थन नहीं मिल रहा है। कई देशों में लॉकडाउन लागू करने में जुटी पुलिस और लॉकडाउन विरोधी भीड़ के बीच झड़पें होने की खबरें आई हैं। इसकी मुख्य वजह मार्च से मई तक रहे पहले लॉकडाउन के कारण आई आर्थिक मुसीबत है। इससे उन दक्षिणपंथी नेताओं को अब ज्यादा समर्थन मिल रहा है, जो शुरू से लॉकडाउन या मास्क पहनना अनिवार्य करने के विरोधी रहे हैं। ब्रिटेन में ब्रेग्जिट पार्टी के नेता नाइजेल फराज ने अपनी पार्टी का नाम बदल कर रिफॉर्म यूके पार्टी कर दिया है। उन्होंने एलान किया कि अब इस पार्टी का मुख्य एजेंडा लॉकडाउन का विरोध करना होगा। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से जितना लाभ होगा, उसकी तुलना में उससे होने वाला नुकसान उससे कहीं ज्यादा होगा।
कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए पिछले चार दिन के अंदर स्पेन, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और ब्रिटेन में पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन लागू किया गया है। इनमें सबसे जोरदार विरोध स्पेन और बेल्जियम में देखने को मिला है।
स्पेन सरकार ने बीते शनिवार को सख्त लॉकडाउन लागू करने का एलान किया था। इसके तहत रात का कर्फ्यू लागू किया गया है और प्रांतों की सीमाओं को सील कर दिया गया है। इस एलान एक दिन बाद से स्पेन में लागू प्रतिबंधों के उल्लंघन की कई घटनाएं हुई हैं।
कई जगहों पर भीड़ ने लूटपाट मचाई और तोड़फोड़ की। राजधानी मैड्रिड में हिंसा में 12 लोग घायल हो गए। बार्सिलोना, मालगा, विटोरिया, वेलेंसिया, बर्गोस आदि जैसे शहरों में भी लोगों ने सड़क पर आकर लॉकडाउन का विरोध किया है। धुर दक्षिणपंथी वॉक्स पार्टी ने ज्यादातर जगहों पर विरोध का नेतृत्व किया है।
बेल्जियम में धुर दक्षिणपंथी गुटों से जुड़े तकरीबन 2000 वैक्सीन विरोधी कार्यकर्ताओं ने राजधानी ब्रसेल्स में पिछले सोमवार को घेरा डाल दिया। उन्होंने कोरोना संक्रमण संबंधी सभी प्रतिबंधों को हटाने की मांग की। पुलिस को उन्हें हटाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा।
कोरोना संक्रमण के पहले दौर में सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए देशों में इटली भी था। वहां भी नए सिरे से प्रतिबंध लागू किए गए हैं। सिनेमा और थिएटर बंद कर दिए गए हैं, जबकि शाम छह बजे तक ही अब बार खुला रखने की इजाजत है। इन प्रतिबंधों के लागू होनेके बाद फ्लोरेंस, रोम, नेपल्स, तुरिन, बोलोगना जैसे शहरों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं।
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर बोतलें फेंकी, पथराव किया और वाहनों को पलट दिया। इटली के गृह मंत्री लुसियाना लेमोग्रेसी के मुताबिक नव-फासीवादी गुटों से जुड़े लोग और असामाजिक तत्व ऐसी गतिविधियों में शामिल हुए हैं।
जर्मनी में पहली बार की तरह इस बार भी सॉफ्ट लॉकडाउन लागू किया गया है। इसके बावजूद जर्मनी गुजरे महीनों में भी मास्क पहनना अनिवार्य करने के आदेश के विरोध में बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं। फ्रांस में भी इस बार सॉफ्ट लॉकडाउन का सहारा लिया गया है। मगर वहां मिली प्रतिक्रियाओं से जाहिर है कि ये उपाय अब जनता में लोकप्रिय नहीं है।
जानकारों का कहना है कि लॉकडाउन के विरोध की वजह ये समझ बनना है कि महामारी अभी लंबे समय तक जारी रहेगी। लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था तबाह हुई है, जिसकी कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ी है। इसलिए महामारी पर काबू पाने केलिए उन्हें ये उपाय अब माफिक नहीं लग रहा है।
इटली में प्रदर्शनकारियों ने जो नारे लगाए, उनमें शामिल हैं- काम हमारा हक है और अगर तुम बंद करते हो तो हमें भुगतान करो। यानी बढ़े विरोध के पीछे धुर दक्षिणपंथियों के वैचारिक दुराग्रह से कहीं ज्यादा आर्थिक कारण अहम हैं।
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