ग्लोबल वॉच एनालिसिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल जनवरी में चीन ने वेनेजुएला के खिलाफ लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों की आलोचना की थी। चीन के बाद नेपाल की सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने भी चीन के जैसा ही बयान जारी कर अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर से वेनुजुएला के आंतरिक मामलों में दखल देने के खिलाफ बयान जारी कर दिया। शायद यह ऐसा पहला मामला था जब नेपाल ने लैटिन अमेरिकी देश के लिए अमेरिकी नीतियों पर इस तरह का बयान जारी किया था। दरअसल, लेखक का कहना है कि नेपाल का शासक वर्ग एक तरह से चीन के हाथों की कठपुथली बन चुका है और लगता है कि उसमें खुद के फैसले लेने की भी काबिलियत नहीं बची है। जाहिर है कि एक स्वयंप्रभु राष्ट्र के सामने आखिर यह कैसी मजबूरी है।
चीन के दबाव में तिब्बती शरणार्थियों की हो रही है प्रताड़ना
इसके बाद रोलैंड जैक्वार्ड ने चीन की वजह से नेपाल में मानवाधिकारों के गिरते स्तर पर सवाल उठाया है। इसमें नेपाल में रह रहे तिब्बती शरणार्थियों का मुद्दा उठाया गया है। नेपाल और तिब्बत के बीच लंबी सीमा है और वहां पर इस समय 20,000 से ज्यादा तिब्बती शरणार्थी रह रहे हैं, जिनमें से कई तब से नेपाल आ रहे हैं, जब तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने 1959 में भारत में शरण लिया था। लेकिन, हाल में वॉशिंगटन स्थित दो मावधिकार संगठनों- इंटरनेशनल कैंपेन फॉर तिब्बत और पेरिस बेस्ड इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर ह्यूमैन राइट्स ने बताया है कि अब जो तिब्बती नेपाल आ रहे हैं, उनको ये धमकियां दी जाने लगी हैं कि उन्हें जबरन चीन भेज दिया जाएगा। जैक्वार्ड ने लिखा है कि हाल के दिनों में जबसे नेपाल सरकार और चीन में नजदीकियां बढ़ी हैं तो तिब्बती शरणार्थियों को उनके रिफ्यूजी एसोसिएशन के चुनाव से लेकर दलाई लामा के जन्मदिन मनाने तक से रोका जा रहा है। यही नहीं किसी तिब्बती शरणार्थी ने अगर चीन की प्रताड़ना के खिलाफ प्रदर्शन कर दिया तो नेपाली अधिकारी उनपर टूट पड़ते हैं।

भारत से रिश्तों की जानकारी लेने के लिए 'पीएम के सलाहकार' को दी रिश्वत
सबसे बड़ा खुलासा इस लेख में यह किया गया है कि नेपाल की सरकार और संस्थाओं पर अपना प्रभाव कायम करने के लिए चीन की सरकार लगातार काठमांडू स्थित अपने दूतावास के जरिए वफादारों का एक पूरा नेटवर्क तैयार कर रहा है। इसके लिए चीनी दूतावास उन नेपाली राजनेताओं की जेबें गर्म करता है या फिर चाइनीज दूतावास की सेवा के नाम पर किसी तरह का औपचारिक काम थमा देता है। उदाहरण के लिए काठमांडू के चाइनीज दूतावास ने नेपाल कांग्रेस पार्टी के एक सदस्य और नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के विदेश सलाहकार रंजन भट्टाराई को भारत-नेपाल रिसर्च पेपर का इंतजाम करने के लिए 15 लाख रुपये (नेपाली) का भुगतान किया था।

भारत को लेकर नेपाल की रणनीति समझने की थी साजिश?
चीन ने रंजन भट्टाराई को जब अक्टूबर 2017 में जब भारत-नेपाल संबंधों का रिसर्च पेपर देने का ठेका दिया था, तब वे नेपाल-भारत संबंधों के प्रबुद्ध लोगों के समूह के एक सदस्य और नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी स्टडीज के चेयरमैन थे। 15 लाख रुपये का वह भुगतान भट्टाराई के नाबिल बैंक के एकाउंट में किया गया था। रोलैंड जैक्वार्ड लिखते हैं, 'यह ऐसा कॉन्ट्रैक्ट था, जिससे चीन के दोनों हाथों में लड्डू थे, इससे न केवल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को वित्तीय लेनदेन में शामिल करने का एक रास्ता निकलता था, भारत को लेकर नेपाल की रणनीति को समझने का भी बेहतरीन मौका मिल जाता। '

नेपाल की स्वायत्ता पर गंभीर संदेह- रिपोर्ट
बाद में भट्टाराई को 2018 के नवंबर में ओली सरकार में विदेश सलाहकार के तौर पर नियुक्त कर दिया गया। हालांकि यह साफ नहीं है कि उनकी इस नियुक्ति में चीन का कितना रोल है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि नेपाली पीएम के दफ्तर में पद मिलने के बावजूद वे नेपाल में चीन की राजनयिक ली यींगक्वी से लगातार संपर्क में बने रहते हैं। रोलैंड जैक्वार्ड का कहना है कि, 'नेपाल के प्रधानमंत्री के दफ्तर में वरिष्ठ सलाहकारों समेत चीन से वित्तीय लेनदेन रखने वालों की मौजूदगी से यह वहां की सरकार की स्वायत्तता और स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता पर गंभीर संदेह पैदा होते हैं।'

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