12 अप्रैल 2020 संस्कार न्यूज़

लगभग दो दर्जन पुरुष-महिला वृद्धजन इस आश्रम में रह रहे हैं, जिन्हें कोरोना से बचाव के लिए मास्क आदि तो दिए ही गए, साथ ही होम्योपैथिक दवा भी पिलाई गई।
शिवपुरी। एक तरफ दुनिया में लोग कोरोना वायरस से दहशत में हैं, वहीं शिवपुरी के वृद्धाश्रम में रहने वाले निराश्रित बुजुर्गों का कहना है कि यह वायरस सबको छोड़कर हमें अपने साथ ले जाएं, क्योंकि हमारा इस दुनिया में कोई नहीं है।
लगभग दो दर्जन पुरुष-महिला वृद्धजन इस आश्रम में रह रहे हैं, जिन्हें कोरोना से बचाव के लिए मास्क आदि तो दिए ही गए, साथ ही होम्योपैथिक दवा भी पिलाई गई।
बरसों से इस निराश्रित भवन में रहने वाले वृद्धजनों की अपनी ही अलग दुखभरी दास्तां हैं, किसी की अपने बेटे से नही बनी तो किसी को बच्चों ने नहीं झेला तो वे आश्रम में आ गए।
शनिवार को वृद्धाश्रम में पहुंचकर जब वहां रहने वाले पुरुष वृद्धजनों से पूछा कि क्या कोरोना का नाम सुना है, तो वे बोले सुबह-शाम रेडियो में वो ही सुन रहे हैं। क्योंकि टीवी कुछ दिनों से खराब है, कोरोना कैसे देश व दुनिया में लोगों के जीवन के लिए खतरा बना हुआ है।
जब उनसे पूछा क्या आप लोगों को भी इससे डर लगता है, तो बोले अब जिंदगी से प्यार ही नहीं रहा तो फिर कोरोना से डर कैसा?। इनमें से किसी की बेटी है, जो पिता से मिलने आती है, लेकिन अपने घर नहीं ले जा सकती, क्योंकि दामाद नहीं चाहते।
वहीं कुछ को उनके बेटे ने साथ में रखने की बजाए यहां छोड़ दिया। निराश्रित भवन में रहने वाले वृद्धजनों की अपनी ही दास्तां हैं-
करते थे इलेक्ट्रिक का काम
निराश्रित भवन में रजिस्टर में राम-राम लिखने वाले एक पैर से दिव्यांग ओमप्रकाश जाटव कभी इलेक्ट्रिक के मिस्त्री थे और ग्वालियर में राज मोटर्स में काम करने जाते समय
एक्सीडेंट में एक पैर फैक्चर हो गया। एक बेटी है जो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है। बेटी तो पिता से मिलने आती है और हालचाल पूछती रहती है।
केपी सिंह व देवेंद्र जैन के यहां थे मुनीम
करैरा के रहने वाले लक्ष्मीनारायण गुप्ता ने पिछोर विधायक के.पी सिंह के कमलेश्वर स्टोन पर तथा पूर्व विधायक देवेंद्र जैन के यहां भी मुनीम का काम किया। बड़ा बेटा बाबा बन गया, जबकि छोटा इंदौर में प्राइवेट कंपनी में काम करता है। बेटे व उसकी पत्नी से बनी नहीं, तो बेटा अपनी माँ को सााथ ले गया, पिता यहां निराश्रित भवन में है।
डिलेवरी में हुई पत्नी की मौत, दो बेटे गांव में
ग्राम कोटा भगोरा में रहने वाले ग्यासी जाटव बताते हैं कि लगभग 45 साल पूर्व पत्नी की डिलेवरी के दौरान मौत हो गई। घर में दो बेटे हैं, लेकिन गांव में बेटों के बच्चे व अन्य परिवारजन शोर-शराबा करके सोने नहीं देते थे। इसी बात पर विवाद होता रहता था, इसलिए बेटों का घर छोड़कर यहां आकर रहने लगे।
पत्नी की कैंसर से मौत, इलाज में सब कुछ खत्म
ग्राम खैरोना के रहने वाले चिरौंजी प्रजापति ने बताया कि हमारे पास कोई जमीन नहीं है, पत्नी को कैंसर था उसके इलाज में डेढ़ लाख खर्च हो गए, फिर भी वो नहीं बच सकी। झींगुरा में बहन रहती है, वो खुद एक जगह चौकीदारी करते थे। जिसके यहां चौकीदारी करते थे, वे ही हमें बाद में यहां छोड़ गए।
जलाऊ लकड़ी लेने आते थे ग्वालियर से
निराश्रित भवन में रहने वाले वृंदावनलाल ने बताया कि हम ग्वालियर में रहते थे और आर्थिक स्थिति कमजोर थी, गरीबी में दो बेटियों की शादी की। शिवपुरी में जलाऊ लकड़ी लेने ट्रक पर आते थे।
शरीर का एक हिस्सा पैरालाइज हो गया। बेटियां तो चाहती हैं, लेकिन दामाद नही चाहते। शिवपुरी में आते-जाते थे, इसलिए यहां पर निराश्रित भवन में आ गए।
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