देश में अभी करीबन 18,200 न्यायाधीश हैं. करीब 23% जजों के पद खाली हैं. लेकिन, देशभर में करीब अब भी 4071 कोर्टरूम की कमी है. यानी हजारों जजों के सर पर छत ही नहीं हैं, जिसके नीचे बैठकर वे फैसला सुना सकें या मामले की सुनवाई कर सकें. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2019 के अनुसार देश में 23,754 कोर्टरूम स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें 18 प्रतिशत की कमी है. अगर सभी जजों के खाली पद भर दिए जाएं तो देश में 4071 कोर्टरूम की कमी हो जाएगी.
ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि देश में कोर्टरूम बनाने की गति बेहद धीमी है. इसके पीछे बजट की कमी भी एक कारण है. कोर्टरूम की कमी की वजह से भी जजों की भर्ती प्रभावित होती है. जजों की भर्ती प्रभावित होने से लंबित मामले निपटाने में समय लगता है.
11 राज्यों में जजों की तुलना में कोर्टरूम 10 फीसदी से कम
देश के 30 राज्यों में से 11 राज्य ऐसे हैं जहां स्वीकृत जजों के पदों की तुलना में कोर्टरूम 10 फीसदी से कम है. देश के करीब 24 राज्यों में जजों की तुलना में कोर्टरूम कम हैं. छोटे और बड़े अदालतों में मामलों में औसतन विलंब 2.7 से लेकर 9.5 साल है. सिर्फ ओडिशा और त्रिपुरा के हाईकोर्ट और अधीन न्यायलयों में 100 फीसदी मामलों का निपटारा किया गया. बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में दर्ज 39.5 फीसदी मामले 5 साल से ज्यादा समय से लंबित हैं.
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