पर्यावरण पर युवा हावी एवं पर्यावरण युवाओं पर हावी... आखिर युवा कहां तक सीमित ?
"नरोत्तम वर्मा खरई समाजसेवी"
शिवपुरी - हमारा भारत लोकतांत्रिक देश है और यहां सभी को बोलने का, खाने का, पीने का अधिकार है। क्या कभी हमने सोचा है कि हमें क्या बोलना चाहिए? कैसे रहना चाहिए? देखा जाए तो इस पर कभी हमने ध्यान नहीं दिया...भारत देश में युवाओं की संख्या काफ़ी ज्यादा है और युवाओं को एक शब्द से परिभाषित करूं तो ऊर्जा सामाजिक तौर पर देखा जाए तो ज्यादातर ऊर्जा पेड़ों के पत्तों की तरह उड़ रही है, हालांकि पेड़ों पर पत्ते वापिस भी आ जाते हैं। मगर आजकल युवा आज कि हवा में उड़ रहा है।
युवा अपने ग्राम - कस्बे से परीक्षा व जॉब के लिए पलायन कर रहे हैं। मगर शहर में जाकर...आज के धुआं वाले वातावरण में शामिल हो रहे हैं। आख़िर यह धुआं वाला वातावरण है क्या? धुआं वाले वातावरण को भी हमने न्योता दिया है। क्योंकि हमने वातावरण पर ज़ोर तो दिया है, मगर एक विशेष दिन का सीमित कर दिया यानी कि शहर में जाकर चाय की स्टॉल पर जाकर चाय की चुस्की तो लेते हैं, मगर चाय के साथ धुआं के नशे का गुलाम हो रहे हैं, जिससे युवा अन्य गतिविधियों में पिछड़ रहा है और इसी का परिणाम है कि पर्यावरण हम पर हावी हो रहा है और हम पर्यावरण पर जैसे कि कोरोना काल आना भी एक पर्यावरण से दुश्मनी जैसा है।
आख़िर प्रकृति का नियम है बदलाव, मगर कोरोना काल में हम जागरूक हुए पेड़ - पौधे लगाए, लोगों की हर संभव मदद की। मगर एक तरह से देखा जाए तो आज भी युवाओं में सामाजिक ऊर्जा की ज़रूरत है। क्योंकि युवाओं की भूमिका आज के समय बड़ा बदलाव ला सकती है। अन्यथा हमें ऑक्सीजन, मास्क की आवश्यकता भी पड़ सकती है। इसलिए पर्यावरण का भी संदेश है कि पर्यावरण से मित्रता रखेंगे। तो पर्यावरण आपको स्वस्थ व तंदुरुस्त एवं सकारात्मक रखेगा। उसके लिए हमें जल्द ही पर्यावरण का महत्व समझना होगा।
गांवों में जागरूकता लानी होगी, नशे पर लगाम लगानी होगी। पर्यावरण को लेकर विद्या के मंदिरों से नवाचार करने होंगे। अब अपनी गलती सुधारने का समय है, अन्यथा हम उसी आधार को नष्ट करने का खतरा उटा रहे हैं, जिस पर हम निर्भर हैं।
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