ढुलमुल और बिन पेंदी के लोटो का जमाना आ गया , जनता बेबस। - The Sanskar News

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Thursday, October 29, 2020

ढुलमुल और बिन पेंदी के लोटो का जमाना आ गया , जनता बेबस।

जनता से विश्वासघात करने वालों 
घुमावदार लोकतंत्र जनता की भावना समझता ही नहीं


मध्यप्रदेश , घुमावदार लोकतंत्र के रेत में से तेल निकालने वाले बिन विधायक जब इस्तीफा देकर मंत्री बन कर दोबारा चुनाव में आते हैं तो अपनी विचारधारा में परिवर्तन के ऐसे-ऐसे कुतर्क जनता के सामने रखते हैं, की जनता भी घुमावदार लोकतंत्र की घुमावदार बातों में आ जाती है और तमाम नैतिक अनैतिक बातों को छोड़कर ऐसे ढुलमुल घुमावदार लोकतंत्र के सिपहसालार उम्मीदवार को दोबारा जिताकर घुमावदार लोकतंत्र की जय जयकार करती है।


हमारे देश का लोकतंत्र घुमावदार हो गया है घुमावदार के साथ साथ एक पार्टी का पर्याय हो गया है। घुमावदार लोकतंत्र की विशेषता है, वोट किसी भी पार्टी को दो सरकार एक पार्टी की ही बन ही जाती है। पूर्ण बहुमत हो, आधा बहुमत हो या अल्पमत हो यह घुमावदार लोकतंत्र जनता की भावना समझता ही नहीं है। पूरे समय मनमानी में लगा रहता है घूम फिर कर एक पार्टी की सरकार हर राज्य में बना देता है। इसीलिए अब वह पार्टी भी जनता के हितों से विमुख होकर यह समझ गई है की जनता से ज्यादा जनता के चुने हुए लोगों को बस में करना आसान है और यह आज के घुमावदार लोकतंत्र में सरकार बनाने का आसान तरीका है ।

वैसे इस अकेली पार्टी को इन सब के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता । क्योंकि जब तक दूसरी पार्टियों में लालची और अवसरवादी नेता और विधायक नहीं रहेंगे तब तक उनको खरीदने वाला तो बेकार ही बैठा रहेगा।

घुमावदार लोकतंत्र ने दो प्रथाओं को जन्म दिया है, पहली प्रथा मंत्रिमंडल के गठन की परिपाटी बदल गईं है अब विधायक मुंह देखते रह जाता और विधायक से इस्तीफा देने वाले मंत्री बन जाता है और जनता को यह समझना मुश्किल हो जाता है, की उसने उम्मीदवार को विधायक बनने के लिए चुना था के विधायक के पद से इस्तीफा देने के लिए। निर्दलीयों छोटी पार्टियों के विधायकों का वजन भी इस घुमावदार लोकतंत्र में बढ़ा है, उनके मंत्री बनने की संभावनाएं बढ़ी है। पहले निर्दलीय या 5-10 सदस्यों वाली पार्टियों के विधायकों का मंत्री बनना असंभव था परंतु घुमावदार लोकतंत्र में दल बदल कानून का प्रभाव कम पढ़ने की उज्जवल संभावना के कारण मंत्री बनने की संभावना बड़े दलों के उम्मीदवार से अधिक रहती है।

दूसरी प्रथा चाहे कोई भी दल कितना भी बहुमत में रहे वह यह नहीं बता सकता की सरकार 5 साल चलेगी कि नहीं, इसलिए कम समय में सरकार का दोहन अधिक से अधिक कैसे किया जा सकता है इसमें राजनीतिक दल माहिर हो गए है। अब कोई भी पार्टी दूरगामी योजनाओं के आधार पर सरकार नहीं चलाती।

घुमावदार लोकतंत्र के माहिर खिलाड़ी आर्थिक रूप से भी संपन्न हो जाते हैं, विधायक से इस्तीफा देकर भी करोड़ों कमाते हैं बाद में मंत्री बन कर भी सत्ता का पूरा दोहन करते हैं, ऐसे लोगों को नुकसान की संभावना बहुत कम रहती है क्योंकि उनके राजनैतिक विरोधी भी दलबदल करने पर उनके तलवे चाटने पर मजबूर होते हैं। जनता समझने की कोशिश करे तो यह समझ आता है की ढुलमुल और बिन पेंदी के लोटो का जमाना आ गया है, घुमावदार लोकतंत्र में सबसे अच्छा विधायक वही है जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही भरोसा ना कर सके, ऐसे गैर भरोसेमंद विधायकों की मंत्री बनने की संभावना 100% के करीब रहती है।

इस घुमावदार लोकतंत्र में किसी भी पार्टी में आयातित उम्मीदवारों का स्वागत ऐसे उत्साह से किया जाता है जैसे कोई अपने बच्चे को जन्म देने के बाद जवान और काबिल कर उसे घर जमाई बनने के लिए किसी और को सौंपता हैऔर उसका स्वागत होता है। वर्तमान में कई राजनीतिक दलों के हालात आयातित नेताओं के कारण ऐसे हो गए है, जैसे घर जमाई ससुर की संपत्ति पर कब्जा कर लेता है।

पूरे घुमावदार लोकतंत्र में जनता की स्थिति सबसे बेबस और दयनीय है । क्योंकि एक बार वोट देने के बाद उसकी उपयोगिता, उसका मूल्य, कीमत शुन्य और दो कौड़ी की रह जाती है। वोट मांगने तक तो लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन होता है लेकिन एक बार जहां सरकार बन गई तो उसके बाद लोकतंत्र नेता का, नेता के लिए, नेताओं के द्वारा शासन हो जाता है। मेरे देश के ऐसे करामाती, हरकती, घुमंतू, ढुलमुल नेताओं के प्रति वफादार और चक्रव्यूही, घुमावदार लोकतंत्र को बारंबार प्रणाम। अब जनता दल बदल नेताओं को कटघरे में खड़ा करेगी। मध्यप्रदेश की जनता दल बदल नेताओं से बेबस । 03 नंबर को उपचुनाव में जनता का रूूख देखने को मिलेगा

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