उठा ले गए थे बेटियां शरणार्थियों की दर्दभरी कहानी:पाकिस्तान मैं हिंदुओं को अत्याचार कर जबरन देश से निकलने को मजबूर कर देते हैं - The Sanskar News

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Friday, December 13, 2019

उठा ले गए थे बेटियां शरणार्थियों की दर्दभरी कहानी:पाकिस्तान मैं हिंदुओं को अत्याचार कर जबरन देश से निकलने को मजबूर कर देते हैं



नई दिल्ली। 2009 जून की तपती हुई दोपहर थी। हम अपने परिवार के साथ खेतों में काम कर रहे थे। तभी दस बारह लोग खेतों में आकर कहते हैं कि अभी तक तुम लोग गए नहीं यहां से। हमने और हमारे पति नारायण ने हाथ जोड़कर कहा कि बस कुछ दिन की और मोहलत दे दो। चले जाएंगे, लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी। हमको मारा पीटा और हमारी दोनों बेटियों को उठा ले गए। उन्हें छोड़ने के लिए हमने बहुत मिन्नतें की, परंतु वह दोनों लड़कियों को ले गए। इतना कहते हुए मजनू का टीला में रहने वाली अस्सी साल की लक्ष्मी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। कहने लगी पता नहीं कहां होंगी हमारी बेटियां। जिंदा भी होंगी या नहीं? ये दर्दनाक आपबीती है 80 वर्षीय लक्ष्मी देवी की, जो अब दिल्ली में एक झोपड़ी में रहती हैं। पाकिस्तान से 2011 में तीर्थयात्रा के बहाने भारत आईं और फिर कभी वापस नहीं गई। बातचीत में लक्ष्मी ने बताया कि बहुत कहर बरपाया है हम लोगों पर पाकिस्तान ने। हमारे चार बेटे थे। दो की हत्या तो पाकिस्तानियों ने बचपन में ही कर दी थी। जैसे-तैसे दो बेटों और दो बेटियों को बचाकर हम सिंध के हैदराबाद के ग्रामीण इलाकों में चले गए। वहां भी कभी मुसलमान बनने पर मजबूर किया जाता रहा तो कभी मुल्क छोड़ देने को कहा जाता रहा। 
पाकिस्तान में हिंदुओं को श्राप समझा जाता है:-
लक्ष्मी के पति नारायण कहते हैं कि वहां हिंदुओं का कोई मान-सम्मान नहीं है। मेरी आंखों के सामने मेरे दो बच्चों की निर्दयता से हत्या कर दी। मेरे सगे रिश्तेदारों को भी जला दिया। मेरे भाई-भाभी का गला काट दिया था। उन हत्यारों की शक्लें आज भी मेरे सामने आ जाती हैं। बंटवारे का दंश मैंने और मेरे परिवार ने झेला है। इसलिए मुझसे बेहतर नागरिकता का मतलब और कौन जान सकता है..? ये वतन हमारा है हिंदुओं का है। भारत और पाकिस्तान के विभाजन के दौर को याद करतीं लक्ष्मी देवी के हाथ कंपकंपा रहे थे। उनकी आंखों में गुस्सा और दुख दोनों ही साफ दिखाई दे रहा था। बात करते-करते वो अचानक चिल्लाते हुए बोलीं, गलत तो उन नेताओं ने किया था। असली हत्यारे तो वे हैं। विभाजन से पहले लोग बहुत अच्छे थे, लेकिन अब सीमा के दोनों ओर लोग बदल गए हैं। हर कोई हमें अलग निगाह से देखता है। तीर्थयात्रा का बहाना लेकर बड़ी मुश्किल से मैं अपने दोनों बेटे और पति के साथ भारत आ गई। उनके साथ देवर के दो बच्चे और भी थे।
हम अपने वतन में सुकून से रहना चाहते हैं:-
छप्परनुमा इस झोपड़ी में पलंग पर कंबल में बैठीं लक्ष्मी देवी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जब उनसे कोई पाकिस्तान जाने की बात करता है। वे कहती हैं, हम कभी हिंदू-मुस्लिम की बात नहीं करते हैं, लेकिन हम अपने वतन में सुकून से रहना चाहते हैं। पहले भगवान ने हमें जिंदगी दी तो बंटवारे ने वह छीन ली और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके जैसे हजारों शरणार्थियों को नागरिकता संशोधन बिल के जरिए एक संजीवनी दी है। दिल्ली के मजनू का टीला स्थित शरणार्थी शिविर में लक्ष्मी के साथ उनके पति नारायण देव, बेटा सोनादास और रूप चंद रहते हैं। सोना दास और रूपचंद रेहड़ी लगाकर अपने परिवार को पाल रहे हैं।

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