नन्ही सी,नटखटी,चुलबुली चंचल। - The Sanskar News

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Tuesday, April 28, 2020

नन्ही सी,नटखटी,चुलबुली चंचल।

एक नन्ही सी,नटखटी,चुलबुली चंचल,
मेरे आंगन में आती है बुलबुल
अंतर्मन को दहला जाती है।
और फिर मेरा मन बहला जाती है।

उसका रंग मटमैला है,
मगर दिल मेरे जैसा
नीड़ से बना घोंसला,
बिल्कुल मेरे घर जैसा
फिर आहिस्ते से मेरे पास आती है
कभी पंखे पर,कभी मेरे हाथ पर बैठ जाती है।
अंतर्मन को.....

आज वो आंगन में चहकी नही,
तो मै दिन भर में ऊब गया
शाम को पता चला कि,
जिस पेड़ पर घोंसला था वो कट गया
कहाँ होगी केसी होगी ,
यह सब सोचकर,मेरी रूह कांप जाती है।
अंतर्मन को.....

फिर दुखी मन से सोचा कि,
अब मै पेड़ नही कटने दूंगा
अपने घर-आंगन,आस-पास में,
लकड़ी का घोंसला लगाऊंगा
ताकि मेरी बुलबुल फिर से आ सके,
यही लिखने को"राज"कलम स्वयं चल जाती है।
अंतर्मन को....

रचियता-
"बुन्देली मोड़ा"
राज पेन्टर बुन्देलखण्डी
(प्रदेश मीडिया प्रभारी
भारतीय कलाकार संघ म०प्र०)

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